भारतीय जनता पार्टी ,एकनाथ शिंदे की शिवसेना और अजीत पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) वाले गठबंधन महायुति ने कांग्रेस, शरद पवार की राकांपा और उद्धव ठाकरे की शिवसेना वाले गठबंधन इंडिया यानी महा विकास अघाड़ी (MVA) को बुरी तरह हराया। भाजपा ने 2014 के अपने अब तक के सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन को भी पीछे छोड़ दिया है। वहीं,कांग्रेस को राज्य के इतिहास में अपने सबसे कम सीटों पर संतोष करना पड़ा है।
1990 से चले आ रहे पैटर्न में भी बदलाव
यह नतीजे 1990 के दशक से चले आ रहे उस स्थिर पैटर्न को बदलते हुए नजर आ रहे हैं,जहां एक तरफ भाजपा और शिवसेना और दूसरी तरफ कांग्रेस और राकांपा के बीच सीधा मुकाबला होता था। 2014 के लोकसभा चुनाव में मिली जीत के बाद भाजपा का विस्तारवादी तेवर सामने आया। पार्टी अब राज्य की राजनीति में शिवसेना के पीछे दूसरे नंबर पर नहीं रहना चाहती थी। 2014 के विधानसभा चुनाव में अकेले चुनाव लड़ने का उसका दांव सही साबित हुआ। पार्टी 122 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी,हालांकि बहुमत से दूर रही। सहयोगी दल अंततः सरकार बनाने के लिए एक साथ आए और 2019 का विधानसभा चुनाव गठबंधन में लड़ा। हालांकि,मुख्यमंत्री पद को लेकर खींचतान के चलते शिवसेना ने कांग्रेस-राकांपा का दामन थाम लिया। फिर शिवसेना और राकांपा(NCP) का बंटवारा हुआ जिससे राज्य की राजनीति पूरी तरह से बिखर गई, लेकिन इस चुनाव के नतीजों ने यह तय कर दिया है कि महाराष्ट्र की राजनीति किस दिशा में जाएगी।
महायुति को कैसे मिली बड़ी जीत?
सवाल उठता है कि महायुति की इस बड़ी जीत का क्या कारण है?आमतौर पर यह माना जा सकता है कि महिला मतदाताओं ने लाडकी बहन योजना के कारण गठबंधन का समर्थन किया,लेकिन इतने एकतरफा चुनावी नतीजे सिर्फ एक वजह से नहीं आ सकते। ऐसा लगता है कि महायुति ने सब कुछ सही किया और एमवीए से जो भी गलती हो सकती थी,वह हुई। एमवीए के सहयोगियों के लिए सीट बंटवारा करना मुश्किल था। यह तय नहीं हो पा रहा था कि अगर गठबंधन जीतता है तो मुख्यमंत्री कौन बनेगा। टिकट बंटवारे में गड़बड़ी,जमीनी स्तर पर कार्यकर्ताओं के साथ तालमेल की कमी और धनबल के मामले में महायुती से मुकाबला करने में परेशानी जैसी बातें भी सामने आईं।
एक्सिस-माई इंडिया ने अपने एक्जिट पोल में महायुती की बड़ी जीत की भविष्यवाणी की थी। एक्सिस-माई इंडिया ने अपने एक्जिट पोल में यह भी संकेत दिया था कि महायुति को महिला मतदाताओं का अच्छा खासा समर्थन मिल रहा है। यह ध्यान रखना जरूरी है कि गठबंधन को विभिन्न सामाजिक-आर्थिक वर्गों में बढ़त हासिल थी। भाजपा नीत गठबंधन मुस्लिमों (और दलितों) को छोड़कर सभी समुदायों में आगे रहा। गठबंधन को अनुसूचित जनजातियों, मराठा और कुणबी समुदायों में मामूली बढ़त मिली। वहीं,अन्य ओबीसी और सामान्य जातियों में उसकी बढ़त एमवीए से दोगुनी थी।
देश की राजनीति पर कैसे असर होगा? 5 बातों से समझिए
इन नतीजों का राज्य और राष्ट्रीय राजनीति पर क्या असर होगा? पहला,नतीजे इन दोनों गठबंधनों से बाहर की राजनीतिक पार्टियों के हाशिए पर जाने का संकेत देते हैं। यह प्रवृत्ति 2024 के लोकसभा चुनावों के साथ-साथ उसके बाद हुए विधानसभा चुनावों में भी दिखाई दी थी। 2019 के महाराष्ट्र चुनावों में, निर्दलीय और छोटे दलों ने कुल पड़े वोटों का एक चौथाई और 29 सीटें जीती थीं। इस चुनाव में उनका वोट शेयर और सीट शेयर लगभग आधा हो गया है। यह संभव है कि ऐसे कई राजनीतिक दल अब इन दोनों गठबंधनों में से किसी एक में शामिल होने की कोशिश करें।
दूसरा,यह देखना बाकी है कि बालासाहेब ठाकरे की विरासत को कौन सी शिवसेना आगे ले जाएगी। लेकिन उनके परिवार का राजनीतिक रसूख कमजोर पड़ा है। राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना पहले ही हाशिए पर है और उद्धव के गुट का लोकसभा चुनाव में भी प्रदर्शन खराब रहा था। अगर उद्धव की पार्टी को बीएमसी चुनावों में भी ऐसी ही हार का सामना करना पड़ता है,तो उनके लिए पार्टी के टिकट पर जीत हासिल करने वाले विधायकों को साथ रखना मुश्किल होगा।
तीसरा, ऐसा लग रहा है कि कांग्रेस लोकसभा चुनाव में अपने शानदार प्रदर्शन के बाद फिर से उसी जगह पहुंच गई है। ऐसा न सिर्फ राज्य की राजनीति में बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी है। झारखंड में इंडिया गठबंधन की जीत और कुछ महीने पहले जम्मू-कश्मीर में उसकी मामूली भूमिका थी। हालांकि,इन राज्यों में भाजपा को चुनौती देने के बाद हरियाणा और महाराष्ट्र में जीत हासिल करने में उसकी विफलता एक गहरी संरचनात्मक समस्या की ओर इशारा करती है।
चौथा, इन चुनावों के नतीजों ने शरद पवार के परिवार के भविष्य के लिए क्या मायने रखे हैं? यह देखते हुए कि अजीत पवार की पार्टी ने अच्छा प्रदर्शन किया है,कई संभावनाएं हैं। क्या परिवार के भीतर सुलह होगी?
पांचवा, महाराष्ट्र और हरियाणा के बाद भाजपा को थोड़ी राहत मिली होगी,लेकिन उसे इस बात पर भी गंभीरता से विचार करने की जरूरत है कि झारखंड में क्या गलत हुआ,जहां पार्टी सत्ता में वापसी की उम्मीद कर रही थी।
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